हम नहीं चाहेंगे कि सौ साल बाद जब हम खोलें तुम्हारी किताब तो निकले उसमें से कोई सूखा हुआ फूल कोई मरी हुई तितली हम चाहेंगे दुनिया हो तुम्हारे सपनों के मुताबिक।
हिंदी समय में संजय चतुर्वेदी की रचनाएँ